राजस्थान के रेगिस्तानी आँचल के प्राकृतिक मेवे "पचकुटा"...
कैर, कुमटिया, सांगरी, काचर बोर मतीर
तीनूं लोकां नह मिलै, तरसै देव अखीर...
सट रस भोजन सीत में, पाचण राखै खैर.
पान नहीं पर कल्पतरु, किण विध भुलाँ कैर...
जी हाँ, कैर, कुमटिया, सांगरी, काचरी, बोर और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ है. इनके स्वाद के लिए तो देवता भी तरसते रहते है.
छ: रसों वाला भोजन जो अच्छी तरह से पच जाता है, उस कैर, सांगरी के औषधीय गुणों को किस प्रकार भुलाये जा सकते है जो कि कल्पतरु के समान है.
शीतलाष्टमी के ठंडे भोजन की तैयारी के लिए पचकुटा यानी कैर कुमटिया सांगरी गूंदा साबुत अमचूर और सूखी लालमिर्च...
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