Monday, November 30, 2015
Thursday, November 12, 2015
प्रभु अनंत प्रभु कथा अनंता |
इस से सम्बंधित कहानी अक्सर रामायण के अंत में होती है | तो सबसे प्रचलित कथा को देखते हैं | इसके अनुसार राम राजगद्दी पर बैठे थे और लव कुश भी वन से लौट आये थे | सीता धरती में समां चुकी थी| ऐसे ही एक दिन राज सिंहासन पर बैठे श्री राम की अंगूठी उनके हाथ से फिसल कर गिर पढ़ी | जमीन पर जहाँ वो गिरी वहां गड्ढा बन गया और अंगूठी उसमे समाती गई | जब राम ने ये देखा तो पास ही बैठे हनुमान से कहा, तुम तो आकार छोटा कर सकते हो ! जल्दी इस छेद में जाओ और मेरी अंगूठी निकाल लाओ | तो हनुमान अकार छोटा कर के छेद में चले गए |
उधर अंगूठी छेद से होते होते पातळ तक जा पहुंची थी | वहां भूतों के राजा की कुछ सेविकाएँ राजा के भोजन की तैयारी में लगी थी | जैसे ही उन्होंने एक छोटे से वानर को वहां पहुंचे देखा तो उन्होंने भूतों के राजा के भोजन के साथ छोटे से वानर को भी एक थाल में सजाया और भूतराज के भोजन में परोस दिया | हनुमान सोच ही रहे थे की क्या किया जाए इतने में भूतराज आये | वानर को राम नाम जपते देख कर पुछा तुम हो कौन और यहाँ कैसे पहुँच गए ?
इधर पाताल में ये बात चल रही थी उधर राम दरबार में ऋषि वशिष्ठ और भगवान् ब्रह्मा आ पहुंचे | उन्होंने राम से कहा की हमें तुमसे अकेले में बात करनी है | कोई अन्दर ना आये इसका इंतजाम करवाओ | हनुमान तो थे नहीं सो लक्ष्मण को दरवाजे पर नियुक्त किया गया | साथ ही आदेश थे की बात चीत ख़त्म होने से पहले कोई अन्दर आया तो लक्ष्मण का सर काट लिया जायेगा | लक्ष्मण दरवाजे पर तैनात हो गए | तभी वहां ऋषि विश्वामित्र आ पहुंचे, उन्होंने भी राम से मिलना चाहा | लक्ष्मण ने जब उन्हें रोका तो विश्वामित्र बोले, मैं तो गुरु हूँ मुझसे छुपाने जैसा क्या होगा ? फ़ौरन मुझे अन्दर जाने दो या मैं शाप से पूरी अयोध्या जला देता हूँ |
अब लक्ष्मण ने सोचा अन्दर जाने दूं तो सिर्फ मेरा सर जायेगा, ना जाने दूं तो पूरी अयोध्या ! तो पूरे राज्य के लिए एक अपनी बलि चढ़ाना उन्हें सही लगा और उन्होंने विश्वामित्र को अन्दर जाने दिया | अन्दर अवतार काल के समाप्त होने की बात हो रही थी और वसिष्ठ एवं ब्रह्मा ने राम को समझा दिया था की अब उन्हें लौटना चाहिए | वो निकल ही रहे थे की विश्वामित्र आये | जब विश्वामित्र भी लौट गए तो लक्ष्मण ने कहा की अब उनका सर काटा जाए क्योंकि नियम तो उन्होंने तोड़ दिया था ! राम ने समझाने की कोशिश की, कहा की बात ख़त्म हो चुकी थी जब विश्वामित्र आये, इसलिए दंड जरुरी नहीं है | मगर लक्ष्मण नहीं माने, कहा जिसने न्याय की दुहाई देकर अपनी पत्नी को वनवास दे दिया वो अगर अपने भाई को छोड़ दे तो कीर्ति धूमिल हो जाएगी इसलिए उन्होंने खुद ही प्राण त्यागने की ठानी | अपने इरादे को पूरा करने लक्ष्मण सरयू गए और वहां उन्होंने जल समाधी ले ली | राम ने भी अवतार काल समाप्त होने की बात कर ली थी इसलिए लव कुश का राज्याभिषेक करके पीछे पीछे वो भी गए और उन्होंने भी समाधी ले ली |
उधर राम की अंगूठी गिरने और उसके पीछे पीछे आने की कहानी हनुमान सुना चुके थे | तो भूतराज एक थाल ले आये, उसमे ढेर सी अंगूठियाँ रखी थी, भूतराज ने हनुमान से कहा की वो जिस अंगूठी के पीछे आये हैं वो चुन लें और लेकर वापिस जाएँ | अब सब अंगूठियाँ बिलकुल एक सी थी हनुमान पहचान ही ना पायें की वो जिसे ढूँढने आये वो कौन सी है ! जब परेशान होकर उन्होंने भूतों के राजा की तरफ देखा तो वो हंस कर बोले, जितनी यहाँ अंगूठियाँ हैं उतने राम हो चुके हैं अब तक ! जब अवतार काल समाप्त होने लगता है तो अंगूठी गिरती है और मैं संभाल कर उन्हें इस थाल में रख लेता हूँ | जब तुम लौटोगे तो रामायण ख़त्म हो चुकी होगी | इसलिए हनुमान अब तुम धरती पर जाओ |
ये कहानी राम कथा के अनगिनत होने के सन्दर्भ में सुनाई जाती है | संस्कृत के अनेकों रामायण हैं, इसके अलावा बंगला, गुजरती, कन्नड़, तमिल, मराठी, और अन्य अनेकों भारतीय भाषाओँ में भी रामायण लिखी गई है | इसके अलावा बालि, जावा, मलेशिया, थाईलैंड, चीन की विदेशी भाषाओँ में भी रामायण है | जाहिर सी बात है हर बार रामायण एक जैसी भी नहीं है, सिर्फ काव्य में ही नहीं है, कहीं कहीं वो कथा की तरह भी है | जैसे की वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों काव्यात्मक हैं लेकिन अगर सीता के स्वयंवर का प्रसंग देखेंगे तो दोनों में परशुराम अलग अलग समय आते हैं | कहीं थोडा पहले तो कहीं विवाह के बाद ! यहाँ तक की कन्नड़ कवि कुमारव्यास ने रामायण के बदले महाभारत इसलिए लिखा था कि उन्हें कोई स्वप्न आया जिसमे शेषनाग रामायण लिखने वालों की लिखी किताबों के बोझ से कराह रहे थे ! तो संतुलन बनाने के लिए उन्होंने चौदहवी शताब्दी में महाभारत लिखी थी !
तो जैसा की कहते हैं भारत विविधताओं का देश है | एक ही कथा के अलग अलग रूप भी मिलेंगे इस देश के धर्म में |
“प्रभु अनंत प्रभु कथा अनंता |
बहु विधि कहई सुनी सब संता ||”
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