Friday, March 6, 2015

श्री चित्रगुप्त भगवान की आरती

हे चित्रगुप्त भगवान आपकी जय हो |
हे धर्मराज के प्राण आपकी जय हो ||
रतिपति समरूप निधान आपकी जय हो,
हे सकल विश्व् के ज्ञान आपकी जय हो ||
हे विधि के विमल विधान आपकी जय हो,
हे विधना के वरदान आपकी जय हो ||
रच चुके सृष्टि जब ब्रम्हदेव ने देखा,
किस विधि होगा इस सकल विश्व् का लेखा ||
थे चिंता में मग्न सृष्टि के करता,
तब प्रगटे आप उन्ही से ये दुःख हर्ता ||
खोले दृग देखा विधि ने रूप मनोहर,
अपने ही ध्यान का चित्र सामने सुंदर ||
बोले हंसकर हे पुत्र मिटा दुःख मेरा,
रखना इस जग का लेख कर्म है तेरा ||
तू काया से उत्पन् हुआ है मेरे,
कायस्थ कहायेगे इससे सुत तेरे ||
जा देता हु वर होंगे वे यश भागी,
नितिघ्य चतुर ज्ञानी विद्या अनुरागी ||
यो ब्रम्हा से वरदान आपने पाया ,
देवों में भी मान आपने पाया ||
दो हमको भी वरदान आपकी जय हो,
रखना कुल गौरव मान आपकी जय हो ||
                 
                 रचयिता :- स्वः श्री लक्ष्मीनारायण माथुर