Monday, March 13, 2023

राजस्थान के रेगिस्तानी आँचल के प्राकृतिक मेवे "पचकुटा".

 राजस्थान के रेगिस्तानी आँचल के प्राकृतिक मेवे "पचकुटा"...


कैर, कुमटिया, सांगरी, काचर बोर मतीर 

तीनूं लोकां नह मिलै, तरसै देव अखीर...

सट रस भोजन सीत में, पाचण राखै खैर.

पान नहीं पर कल्पतरु, किण विध भुलाँ कैर...


जी हाँ, कैर, कुमटिया, सांगरी, काचरी, बोर और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ है. इनके स्वाद के लिए तो देवता भी तरसते रहते है. 


छ: रसों वाला भोजन जो अच्छी तरह से पच जाता है, उस कैर, सांगरी के औषधीय गुणों को किस प्रकार भुलाये जा सकते है जो कि कल्पतरु के समान है.


शीतलाष्टमी के ठंडे भोजन की तैयारी के लिए पचकुटा यानी कैर कुमटिया सांगरी गूंदा साबुत अमचूर और सूखी लालमिर्च...

Tuesday, March 30, 2021

Secret of ShivLinga

जब प्राचीन आदिमानवों ने आग जलाना सीख लिया तो मनुष्यता की शुरुआत हो गई, एक संस्कृति की शुरुआत हो गई लेकिन सभ्यता की शुरुआत तब हुई जब मनुष्यों ने आग को नियंत्रित करना सीख लिया। आग के चारों तरफ पत्थरों का घेरा बनाया और उसे नियंत्रित किया। इस तरह बना अग्नि कुंड औऱ इसी अग्निकुंड से शुरुआत हुई यज्ञ-कुंड की।  पौराणिक काल मे भूमि आकाश और पाताल तीन लोक माने जाते है लेकिन वैदिक काल मे पृथ्वी, स्वर्ग और इनके बीच का अंतरिक्ष ये तीन लोक माने जाते थे। पाताल का जिक्र वेदों में नहीं मिलता। इसी आधार पर अग्नि के तीन रूप माने गए, पृथ्वी की अग्नि जो रसोई में होती है, स्वर्ग की अग्नि जो ध्रुव तारा है और अंतरिक्ष की अग्नि जो सूर्य है।


वैदिक दृष्टिकोण से ध्रुव तारा देवताओं की अग्नि है जिसके चारों तरफ सात ऋषि यज्ञ कर रहे हैं। इन सात ऋषियों के समूह को सप्तऋषि तारा मण्डल कहा जाता है। सप्तऋषि तरामण्डल को बिग डिपर भी कहा जाता है। बिग डिपर अर्थात बड़ा चमचा या बड़ी कलछी क्योंकि ये तारामंडल पृथ्वी से एक बड़े चमचे जैसा नज़र आता है। इसी को देखते हुए पृथ्वी पर यज्ञ करते समय वैदिक ऋषि यज्ञ में आहुति के लिए एक बड़ी कलछी का प्रयोग करते थे जिसे उद्धारणी कहते हैं। सप्तऋषि तारामंडल वर्ष भर अलग अलग मौसम में अपनी स्थिति बदलता रहता है। सप्तऋषि तारामंडल के एक पूरे वर्ष की परिक्रमा स्थिति को डॉट से जोड़ने पर हमें स्वस्तिक चिह्न प्राप्त होता है। 


स्वस्तिक चिह्न हमें पूरी पृथ्वी पर चीन, मिस्र, जापान, मेसोपोटामिया, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी आदि देशों और हड़प्पा मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी मिला है। वो लोग इसे क्या कहते थे हमनें नहीं पता लेकिन वैदिक ऋषियों ने इसे सु-अस्ति कहा। सु-अस्ति अर्थात शुभ हो।



मनुष्यता की शुरुआत तब हुई जब मनुष्य ने अग्नि को नियंत्रित करना सीख लिया। अग्नि को कैसे नियंत्रित किया, यज्ञ-कुंड बना के। यज्ञ की अग्नि पृथ्वी औऱ स्वर्ग को जोड़ती है। यज्ञ में ऋषि देवताओं को कुछ देता है बदले में देवता ऋषि को कुछ देते हैं। जब लेन देन शुरू होता है तो सभ्यता का निर्माण होता है। ऋषि यज्ञ करते थे और राक्षस तप करते थे। ऋषि लेन देन करते थे जबकि राक्षस लेन देन नही करते थे, वो सिर्फ छीनते थे इसलिए दोनों के बीच हमेशा टेंशन रहती थी। ये मेजर डिफरेंस है यज्ञ और तप में। यज्ञ समाज के लिए होता है जबकि तपस्या स्वयं के लिए होती है। यज्ञ में बाहरी अग्नि नियंत्रित की जाती है, तपस्या में भीतरी अग्नि नियंत्रित की जाती है। 


अब स्वस्तिक मन्त्र की पहली लाईन पर गौर करिए, 


"ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।"


" महान कीर्ति वाले इंद्र हमारा कल्याण करो।"


जैसा कि हम जानते हैं इंद्र वर्षा के देवता हैं और उनके पास अप्सरा डिपार्टमेंट भी है। चूंकि तप स्वयं के लिए होता है तो जब भी कोई राक्षस, ऋषि या राजा तपस्या करता था तो इंद्र एक अप्सरा भेज देते थे। अप्सरा बना है संस्कृत के अपस से और अपस का अर्थ होता है जल।


एक तरफ तप अर्थात अग्नि है औऱ दूसरी तरफ अपस अर्थात जल है। सभ्यता के निर्माण के लिए मनुष्यों को दो ही बेसिक चीज़ों की जरूरत है,अग्नि और जल। जब दोनों मिलेंगे तो ही कुछ नया प्राप्त होगा। सुर यज्ञ करते हैं और असुर तप करते हैं, दोनो के बीच टेंशन रहती है लेकिन जब दोनों मिलकर समुद्र मंथन करते हैं तभी अमृत प्राप्त होता है। शिव भी तपस्वी है इसलिए देवता सती को शिव से मिलाने की योजना बनाते हैं ताकि शिव के तप को यज्ञ में बदला जा सके, वो एकांत से निकल कर समाज मे शामिल होकर मनुष्यता को ज्ञान दें लेकिन दक्ष प्रजापति यजमान है जो यज्ञ करता है इसलिए दोनो के बीच टेंशन हैं।


ज्यामितीय गणित में अग्नि को अपवर्ड ट्रायंगल के रूप में दर्शाया जाता है औऱ जल को डाउनवर्ड ट्रायंगल के रूप में। जब दोनों त्रिभुज मिलते है तो स्टार ऑफ डेविड मिलता है, पंचमहाभूत मिलता है, त्रिपुरसुंदरी का यन्त्र शिरोमणि 'श्री यंत्र', 'नवचक्र' या 'महामेरू' मिलता है, मिश्र का प्राचीन फ्लॉवर ऑफ लाइफ मिलता है।


अपवर्ड ट्रायंगल शिव है, डाउनवर्ड ट्रायंगल शक्ति है। दोनो के अंतर्ग्रथित होने से शिवलिंग बनता है।



प्राचीन आदिमानव जो खुले आसमान के नीचे, पेड़ो और गुफाओ में रहते थे, प्राकृतिक शक्तियों से पूरी तरह अनजान थे। वो आसमान में चमकती बिजली से डरते थे, आग से डरते थे, बारिश से डरते थे, आंधी से डरते थे, जंगली पशुओं से डरते थे। समय के साथ उनका अवचेतन मन इन शक्तिशाली प्राकृतिक शक्तियों से बेहतर सम्बन्ध बनाने का प्रयास करने लगा होगा और उन्होंने इनकी उपासना शुरू कर दी होगी। वेदों के सूक्त इन शक्तिशाली प्राकृतिक शक्तियों को ही समर्पित हैं। मन्त्रो द्वारा अग्नि, वायु, वरुण, चन्द्र, सूर्य, इंद्र आदि प्राकृतिक शक्तियों को साधने के विभिन्न प्रयास किए गए है। लेकिन वेदों में एक और देवता हैं जिन्हें बहुत ज्यादा महत्व नहीं दिया गया, रुद्र। वो एक पेड़ के नीचे योगमुद्रा में सबसे अलग थलग बैठे है और किसी रिचुअल में पार्टिसिपेट नही करते। वैदिक काल मे पहली बार रुद्र 'केन उपनिषद' में स्पष्ट रूप से महत्वपूर्ण दिखना शुरू होते है। वो एक यक्ष के रूप में देवताओं के सम्मुख आते हैं जिन्हें गौरी 'परब्रह्मन' कहती है। वो इंद्र से कहती है कि रुद्र ही ब्रह्म हैं। श्वेताश्वेतर उपनिषद में रुद्र पहली बार शिव के रूप में नज़र आते है। शिव प्री वैदिक देव है, महादेव हैं। मोहनजोदड़ो में उनका पशुपति नाथ फिगर मिलता है जो महायोगी मुद्रा में है। गॉड ऑफ़ एनिमल्स।


पुराणों में वो हिन्दू ट्रिनिटी के सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में नज़र आते हैं। ब्रह्मा निर्माता है। सृष्टि निर्माण के साथ ही उनका कार्य समाप्त हो जाता है। विष्णु पालक है जो सृष्टि को चलाते हैं और शिव विनाशक हैं। ब्रह्मा ब्रह्मलोक में रहते हैं। ब्रह्मलोक कहाँ है, हम एक्चुअली नही जानते। विष्णु बैकुंठ लोक में रहते हैं। ये अंतरिक्ष मे कहीं पर है, मगर कहाँ हम एग्जेक्टली नहीं जानते। लेकिन शिव इकलौते ऐसे ईश्वर है जो पृथ्वी पर रहते हैं। एक क्नोन ज्योग्राफिकल फिज़िकल लोकेशन में, कैलाश पर्वत पर। वो इकलौते ऐसे ईश्वर है जो सन्यासी भी है और ग्रहस्थ भी। वो इकलौते ऐसे ईश्वर हैं जिन्हें देवता और असुर दोनों पूजते हैं। प्रह्लाद जैसे एकआध अपवाद छोड़ दे तो कोई असुर विष्णु की पूजा नही करता। वो इकलौते ऐसे ईश्वर हैं जिन्होंने मनुष्य की पुत्री से विवाह किया।पार्वती इज आ ह्यूमन बीइंग। पार्वती पृथ्वी है, मातृशक्ति हैं, अम्बा हैं, समस्त मानवों की माता है।


प्राचीन मानवों ने अम्बा को मनुष्य के जन्म से जोड़कर देखा, उसे प्रकृति का दर्जा दिया, शक्ति का दर्जा दिया। भारत मे प्राचीन मानवों द्वारा आदिशक्ति अम्बा को योनि के रूप में पूजने के प्रमाण 11000 साल पहले से वघोर स्टोन, आंध्रप्रदेश से मिलने शुरू हो जाते है। 2400 साल पहले लज़्जा गौरी के रूप में आदिशक्ति के स्टेच्यू मिलते हैं, डाउनवर्ड ट्रायंगल के आकार में। महाकाली यंत्र में भी इसी को डाउनवर्ड ट्रायंगल के रूप में दिखाया गया है।

वो काली है, अम्बा है, दुर्गा है, शक्ति है, पृथ्वी है, मनुष्यता का आधार है और शिव वो तो परब्रह्म है। आपको अग्नि से डर लगता है, डोंट वरी नटराज के हाथ मे अग्नि शरण लेती है। आपको मृत्यु से डर लगता है, डोंट वरी महाकालेश्वर से मृत्यु को भी डर लगता है। आपको जल प्रलय से डर लगता है, डोंट वरी गंगाधर अपने केशों से ही रुद्र गंगा को नियंत्रित कर लेते है। आपको जंगली पशुओं से डर लगता है, डोंट वरी शिव बाघम्बर है, वाइल्ड बुल नंदी उनकी शरण मे है, नाग उनके गले की शोभा बढ़ाता है। आपको भूतों से डर लगता है, डोंट वरी वो भूतेश्वर है। 


जब आप शिव को पा लेते है तो आपके हर भय का अंत हो जाता है। मनुष्यता के जितने भी भय हैं वो शिव के नियंत्रण में है। शिव चेतना का उच्चतम बिन्दु है जो कुछ नही करती। वो सदाशिव है जो खुद से किसी नेचर एलीमेंट से पार्टिसिपेट नहीं करते, उन्हें पाना होता है। वो आसानी से कहीं भी मिल जाते है श्मशान में, वन मे, किसी गुफा में, किसी पहाड़ पर, किसी पेड़ के नीचे, किसी नदी या समुद्र के किनारे। वो आशुतोष है, आसानी से प्रसन्न हो जाते है लेकिन हमें उन तक स्वयं जाना होता है। सदाशिव को पाने का एक ही रास्ता है, शक्ति। जब शिव और शक्ति मिलते है तो शिव उन्हें खुद में समा लेते है, अपना एक हिस्सा बना लेते हैं। जब शिव शक्ति साथ मे मिलते है तो रौद्र-तांडव आनंद-तांडव में बदल जाता है। जब शिव और शक्ति अंतर्ग्रथित होते है तो शिवलिंग बनता है। शिव विनाशक से निर्माता बन जाते है, फ्रॉम डिस्ट्रॉयर टू री-जेनरेटर। शिव चेतना का प्रकाश पुंज है और योनि मानव शरीर का प्रतीक। 


महाशिवरात्रि हमारे और शिव के मिलन की महाबेला है।



Thursday, February 2, 2017

धरती धोरां री !

धरती धोरां री !
आ तो सुरगां नै सरमावै,
ईं पर देव रमण नै आवै,
ईं रो जस नर नारी गावै,
धरती धोरां री !
सूरज कण कण नै चमकावै,
चन्दो इमरत रस बरसावै,
तारा निछरावल कर ज्यावै,
धरती धोरां री !
काळा बादलिया घहरावै,
बिरखा घूघरिया घमकावै,
बिजली डरती ओला खावै,
धरती धोरां री !
लुळ लुळ बाजरियो लैरावै,
मक्की झालो दे’र बुलावै,
कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै,
धरती धोरां री !
पंछी मधरा मधरा बोलै,
मिसरी मीठै सुर स्यूं घोलै,
झीणूं बायरियो पंपोळै,
धरती धोरां री !
नारा नागौरी हिद ताता,
मदुआ ऊंट अणूंता खाथा !
ईं रै घोड़ां री के बातां ?
धरती धोरां री !
ईं रा फल फुलड़ा मन भावण,
ईं रै धीणो आंगण आंगण,
बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण,
धरती धोरां री !
ईं रो चित्तौड़ो गढ़ लूंठो,
ओ तो रण वीरां रो खूंटो,
ईं रे जोधाणूं नौ कूंटो,
धरती धोरां री !
आबू आभै रै परवाणै,
लूणी गंगाजी ही जाणै,
ऊभो जयसलमेर सिंवाणै,
धरती धोरां री !
ईं रो बीकाणूं गरबीलो,
ईं रो अलवर जबर हठीलो,
ईं रो अजयमेर भड़कीलो,
धरती धोरां री !
जैपर नगर्यां में पटराणी,
कोटा बूंटी कद अणजाणी ?
चम्बल कैवै आं री का’णी,
धरती धोरां री !
कोनी नांव भरतपुर छोटो,
घूम्यो सुरजमल रो घोटो,
खाई मात फिरंगी मोटो
धरती धोरां री !
ईं स्यूं नहीं माळवो न्यारो,
मोबी हरियाणो है प्यारो,
मिलतो तीन्यां रो उणियारो,
धरती धोरां री !
ईडर पालनपुर है ईं रा,
सागी जामण जाया बीरा,
अै तो टुकड़ा मरू रै जी रा,
धरती धोरां री !
सोरठ बंध्यो सोरठां लारै,
भेळप सिंध आप हंकारै,
मूमल बिसर्यो हेत चितारै,
धरती धोरां री !
ईं पर तनड़ो मनड़ो वारां,
ईं पर जीवण प्राण उवारां,
ईं री धजा उडै गिगनारां,
धरती धोरां री !
ईं नै मोत्यां थाल बधावां,
ईं री धूल लिलाड़ लगावां,
ईं रो मोटो भाग सरावां,
धरती धोरां री !
ईं रै सत री आण निभावां,
ईं रै पत नै नही लजावां,
ईं नै माथो भेंट चढ़ावां,
भायड़ कोड़ां री,
धरती धोरां री !


कन्हैया लाल सेठिया

Thursday, November 12, 2015

प्रभु अनंत प्रभु कथा अनंता |

इस से सम्बंधित कहानी अक्सर रामायण के अंत में होती है | तो सबसे प्रचलित कथा को देखते हैं | इसके अनुसार राम राजगद्दी पर बैठे थे और लव कुश भी वन से लौट आये थे | सीता धरती में समां चुकी थी| ऐसे ही एक दिन राज सिंहासन पर बैठे श्री राम की अंगूठी उनके हाथ से फिसल कर गिर पढ़ी | जमीन पर जहाँ वो गिरी वहां गड्ढा बन गया और अंगूठी उसमे समाती गई | जब राम ने ये देखा तो पास ही बैठे हनुमान से कहा, तुम तो आकार छोटा कर सकते हो ! जल्दी इस छेद में जाओ और मेरी अंगूठी निकाल लाओ | तो हनुमान अकार छोटा कर के छेद में चले गए | उधर अंगूठी छेद से होते होते पातळ तक जा पहुंची थी | वहां भूतों के राजा की कुछ सेविकाएँ राजा के भोजन की तैयारी में लगी थी | जैसे ही उन्होंने एक छोटे से वानर को वहां पहुंचे देखा तो उन्होंने भूतों के राजा के भोजन के साथ छोटे से वानर को भी एक थाल में सजाया और भूतराज के भोजन में परोस दिया | हनुमान सोच ही रहे थे की क्या किया जाए इतने में भूतराज आये | वानर को राम नाम जपते देख कर पुछा तुम हो कौन और यहाँ कैसे पहुँच गए ? इधर पाताल में ये बात चल रही थी उधर राम दरबार में ऋषि वशिष्ठ और भगवान् ब्रह्मा आ पहुंचे | उन्होंने राम से कहा की हमें तुमसे अकेले में बात करनी है | कोई अन्दर ना आये इसका इंतजाम करवाओ | हनुमान तो थे नहीं सो लक्ष्मण को दरवाजे पर नियुक्त किया गया | साथ ही आदेश थे की बात चीत ख़त्म होने से पहले कोई अन्दर आया तो लक्ष्मण का सर काट लिया जायेगा | लक्ष्मण दरवाजे पर तैनात हो गए | तभी वहां ऋषि विश्वामित्र आ पहुंचे, उन्होंने भी राम से मिलना चाहा | लक्ष्मण ने जब उन्हें रोका तो विश्वामित्र बोले, मैं तो गुरु हूँ मुझसे छुपाने जैसा क्या होगा ? फ़ौरन मुझे अन्दर जाने दो या मैं शाप से पूरी अयोध्या जला देता हूँ | अब लक्ष्मण ने सोचा अन्दर जाने दूं तो सिर्फ मेरा सर जायेगा, ना जाने दूं तो पूरी अयोध्या ! तो पूरे राज्य के लिए एक अपनी बलि चढ़ाना उन्हें सही लगा और उन्होंने विश्वामित्र को अन्दर जाने दिया | अन्दर अवतार काल के समाप्त होने की बात हो रही थी और वसिष्ठ एवं ब्रह्मा ने राम को समझा दिया था की अब उन्हें लौटना चाहिए | वो निकल ही रहे थे की विश्वामित्र आये | जब विश्वामित्र भी लौट गए तो लक्ष्मण ने कहा की अब उनका सर काटा जाए क्योंकि नियम तो उन्होंने तोड़ दिया था ! राम ने समझाने की कोशिश की, कहा की बात ख़त्म हो चुकी थी जब विश्वामित्र आये, इसलिए दंड जरुरी नहीं है | मगर लक्ष्मण नहीं माने, कहा जिसने न्याय की दुहाई देकर अपनी पत्नी को वनवास दे दिया वो अगर अपने भाई को छोड़ दे तो कीर्ति धूमिल हो जाएगी इसलिए उन्होंने खुद ही प्राण त्यागने की ठानी | अपने इरादे को पूरा करने लक्ष्मण सरयू गए और वहां उन्होंने जल समाधी ले ली | राम ने भी अवतार काल समाप्त होने की बात कर ली थी इसलिए लव कुश का राज्याभिषेक करके पीछे पीछे वो भी गए और उन्होंने भी समाधी ले ली | उधर राम की अंगूठी गिरने और उसके पीछे पीछे आने की कहानी हनुमान सुना चुके थे | तो भूतराज एक थाल ले आये, उसमे ढेर सी अंगूठियाँ रखी थी, भूतराज ने हनुमान से कहा की वो जिस अंगूठी के पीछे आये हैं वो चुन लें और लेकर वापिस जाएँ | अब सब अंगूठियाँ बिलकुल एक सी थी हनुमान पहचान ही ना पायें की वो जिसे ढूँढने आये वो कौन सी है ! जब परेशान होकर उन्होंने भूतों के राजा की तरफ देखा तो वो हंस कर बोले, जितनी यहाँ अंगूठियाँ हैं उतने राम हो चुके हैं अब तक ! जब अवतार काल समाप्त होने लगता है तो अंगूठी गिरती है और मैं संभाल कर उन्हें इस थाल में रख लेता हूँ | जब तुम लौटोगे तो रामायण ख़त्म हो चुकी होगी | इसलिए हनुमान अब तुम धरती पर जाओ | ये कहानी राम कथा के अनगिनत होने के सन्दर्भ में सुनाई जाती है | संस्कृत के अनेकों रामायण हैं, इसके अलावा बंगला, गुजरती, कन्नड़, तमिल, मराठी, और अन्य अनेकों भारतीय भाषाओँ में भी रामायण लिखी गई है | इसके अलावा बालि, जावा, मलेशिया, थाईलैंड, चीन की विदेशी भाषाओँ में भी रामायण है | जाहिर सी बात है हर बार रामायण एक जैसी भी नहीं है, सिर्फ काव्य में ही नहीं है, कहीं कहीं वो कथा की तरह भी है | जैसे की वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों काव्यात्मक हैं लेकिन अगर सीता के स्वयंवर का प्रसंग देखेंगे तो दोनों में परशुराम अलग अलग समय आते हैं | कहीं थोडा पहले तो कहीं विवाह के बाद ! यहाँ तक की कन्नड़ कवि कुमारव्यास ने रामायण के बदले महाभारत इसलिए लिखा था कि उन्हें कोई स्वप्न आया जिसमे शेषनाग रामायण लिखने वालों की लिखी किताबों के बोझ से कराह रहे थे ! तो संतुलन बनाने के लिए उन्होंने चौदहवी शताब्दी में महाभारत लिखी थी ! तो जैसा की कहते हैं भारत विविधताओं का देश है | एक ही कथा के अलग अलग रूप भी मिलेंगे इस देश के धर्म में | “प्रभु अनंत प्रभु कथा अनंता | बहु विधि कहई सुनी सब संता ||”

Tuesday, April 28, 2015

Pretty much everything about Humankind in the past 4,000 years.
For world history, recorded history begins with the accounts of the ancient world around the 4th millennium BC, and coincides with the invention of writing. For some regions of the world, written history is limited to a relatively recent period in human history. Moreover, human cultures do not always record all information relevant to later historians, such as natural disasters or the names of individuals; thus, recorded history for particular types of information is limited based on the types of records kept. Because of these limits, recorded history in different contexts may refer to different periods of time depending on the historical topic
http://en.wikipedia.org/wiki/Recorded_history